जीवाश्म ईंधन निष्कर्षण और ग्लोबल वार्मिंग के बारे में अध्ययन
- एक नए अध्ययन (जर्नल नेचर में प्रकाशित) के अनुसार, ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखने के लिए वैश्विक जीवाश्म ईंधन निष्कर्षण को कम होने की जरूरत है, जो कि 2015 पेरिस जलवायु समझौते द्वारा निर्धारित लक्ष्य है।
- 2015 पेरिस जलवायु समझौते द्वारा निर्धारित लक्ष्य तक पहुंचने के लिए वैश्विक तेल और गैस उत्पादन में 2050 तक प्रति वर्ष तीन प्रतिशत की गिरावट आनी चाहिए।
मुख्य निष्कर्ष:
- अभी तक, दोनों नियोजित और परिचालित जीवाश्म ईंधन निष्कर्षण परियोजनाएं निर्धारित लक्ष्यों को पूरा करने के लिए अनुकूल नहीं हैं।
- विश्व के बहुत से क्षेत्र पहले ही अपने चरम जीवाश्म ईंधन उत्पादन पर पहुंच चुके हैं, और यदि लक्ष्य प्राप्त करना चाहते हैं तो जीवाश्म ईंधन उत्पादन में किसी भी वृद्धि की भरपाई कहीं और की गिरावट से करनी होगी।
- तेल के लिए आवश्यक गैर-निष्कासित भंडार 2050 तक तेल के लिए 58 प्रतिशत, जीवाश्म मीथेन गैस के लिए 59 प्रतिशत और कोयले के लिए 89 प्रतिशत होना चाहिए।
- कहने का तात्पर्य यह है कि अगर ग्लोबल वार्मिंग के लक्ष्यों को ध्यान में रखा जाए तो जीवाश्म ईंधन के इन प्रतिशतों को अ-निष्कार्षणीय रहने की जरूरत है।
पेरिस जलवायु समझौते द्वारा निर्धारित लक्ष्य क्या है?
- 2015 में 195 देशों द्वारा हस्ताक्षरित पेरिस जलवायु समझौते ने आने वाले दशकों में जलवायु परिवर्तन को सीमित करने का लक्ष्य निर्धारित किया है।
- समझौते का उद्देश्य ""वैश्विक औसत तापमान में वृद्धि को पूर्व-औद्योगिक स्तरों से 2 डिग्री से नीचे रखने और पूर्व-औद्योगिक स्तरों से 1.5 डिग्री ऊपर तापमान वृद्धि को सीमित करने के प्रयासों को आगे बढ़ाने के प्रयास करके ग्लोबल वार्मिंग की प्रक्रिया को धीमा करना है”।
भारत के लिए आवष्यकताएं:
- घरेलू अन्वेषण पर जोर कम करना।
- उत्पादक क्षेत्रों की उत्पादकता बढ़ाना।
- सामरिक भंडार बढ़ाना।
- सार्वजनिक क्षेत्र की पेट्रोलियम कंपनियों का पुनर्गठन।
- सिलोड थिंकिंग (विचारों) से बचना।